गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में ।
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले ।।
मंजिल मिल ही जायेगी भटकते ही सही,
गुमराह तो वो है जो घर से निकले ही नहीं.
गिरते हैं शहसवार ही मैदान-ए-जंग में ।
वो तिफ़्ल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले ।।
मंजिल मिल ही जायेगी भटकते ही सही,
गुमराह तो वो है जो घर से निकले ही नहीं.